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Monday, August 1, 2016

उत्तर आधुनिकता और साहित्य,

http://www.swargvibha.in/aalekh/all_aalekh/uttaradhunikta.html


आधुनिकता एक जीवन प्रणाली के समान समकालीन समय से जुड़कर मानवीय मूल्यों की उद्भावक बन गयी थी. एक इतिहास क्रम में नव जागरण और समकालीन विचार आधुनिक के प्रवाह से अस्तित्व में आए.बदले हुवे समय में समकालीन विचारधाराओं में नया चिंतन आरम्ब हुआ. किवेन्टन स्किन्नर ने मानव विज्ञान की महान अवधारणा की वापसी के सन्दर्भ में यह कहा है कि यह उत्तर आधुनिकता का युग है. यह उत्तर आधुनिकता फिल्म से लेकर फैशन तक, साहित्य से संस्कृति तक, कामशास्त्र से कॉमिक्स तक और विज्ञान से विज्ञापन तक हर वस्तु को प्रभावित कर रही है. दर्शन, समाज और मीडिया सब इसके दायरे में है. लियोतार की पुस्तक 'द पोस्ट माडर्न' में कहा गया कि अब बीसवीं शताब्दी के अंत में एक नया सृजनात्मक युग होगा. इसका आरम्भ सं १९६८ ई. में पैरिस के छात्रों के विद्रोह में मिलता है. जिसमें कहा गया कि युवकों को मिलने-जुलने की आज़ादी हो. मार्शल मेकलुहान कि पुस्तक 'द मीडियम इज द मैसेज' में व्यापक परिवर्तनों को अंकित किया गया और उत्तर आधुनिकता ने एक नई विचारधारा का रूप प्राप्त कर लिया. यह भी कहा गया कि आधुनिकता और उत्तरआधुनिकता में मूलभेद यही है कि आधुनिकता एक महान आख्यान को ठोस और इतिहास के दिशाहीन बहाव पर हावी करती है. वहीं उत्तर आधुनिकता लोक कथाओं, जातीय कहानियों और स्थानीय मुहावरों को महत्व देती है .उत्तर आधुनिकता संरचना को तोड़ने की कोशिश है. वह अविरचना है और उसमें विविधता है. आधुनिकता को दोबारा लिखना उत्तर आधुनिकता है और वह विज्ञान के माध्यम से मानवता को मुक्त कराने का प्रोजेक्ट है. यह कहा जा सकता है कि संरचना की जगह अविरचना उत्तर आधुनिकता में मुख्य है. वह केन्द्र से परिधि की ओर जाती है और साहित्य को नए विचार से जोड़ती है. 
उत्तर आधुनिकता कि अभिव्यक्ति साहित्य में व्यापक रूप से हुई है. वास्तव में आज समाज में शक्ति और सत्ता के केन्द्र के बीच मोहभंग कि स्थिति है. आज का रचनाकार एक प्रकार के अलगाव के बीच यथार्थ की दुनिया की तलाश करता है और अपने आत्मनिर्वासन और आत्महत्या से संघर्ष करता है. वह दोस्तीव्स्की हो, काफ्का हो, या मक्सिम गोर्की हो, या रिम्बो हो. संसार की गति बहुत तेज़ है. अब कहीं नायक नहीं है सब जगह प्रतिनायक है. आधुनिक कलाकार का आत्मसंघर्ष ही उसके सृजन का आधार है. बीसवीं शताब्दी में विश्व इतिहास के एक युग का अंत सा हो गया है. इस दुनिया में मनुष्य अनेक रूपों में बँटा हुआ यातना भोग रहा है. उसकी व्यथा और सपनों का कई अंत नहीं है.
कवि ऐसा न हो जैसा मिशल पूको ने कहा है कि "सागर के किनारे रेत पर बनाए गए चेहरे कि भाँति मनुष्य का निशान मिट जाए, कोई महाप्रलय हो जाए और मनुष्य कि मृत्यु ही हो जाए. "इस मृत्यु की घोषणा 'द डेथ ऑफ़ मनी' पुस्तक में कर्टजमन ने की, जो सं १९९२ ई. में प्रकाशित है. साल बेला ने हर्जोग में लिखा "मानव होने का क्या अर्थ है, एक नगर में, एक शताब्दी में, एक परिवर्तन में, एक भीड़ में, जिसे विज्ञान ने एक वस्तु में बदल दिया है. आधुनिकता के अंत की घोषणा कर उत्तर आधुनिकता में व्यक्ति कि मृत्यु को

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